- अंजली
यूं चले थे घर से एक मंजील की तलाश में
एक साथी मिला दो साथी मिले एक कारवा बना |
फिर वो मज़ील मिली
और दूर आस्मां के एक छूर पे ले जाने लगी |
वोह साथी मेरे और वोह कारवा
जब बढ़ रहे थे समंदर को, तब मंजील मेरी बढ़ने लगी आसमां को|
कई सवाल उठने लगे झ्हम मैं ,
कयों कतरो मैं मिलती हैं ज़िन्दगी|
Dziennik z podróży
15 years ago
A good start - keep it up.
ReplyDeleteThanks Anand
ReplyDeletehey.......aapne shayari bhi shuru kar di.....kya baat hai ! ..humein ye andaaz pasand aaya.....aapke kadradaano ki list mein ek naam aur jod lijiye
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