Tuesday, July 1, 2008

वोह साथी और वोह मंजील

- अंजली

यूं चले थे घर से एक मंजील की तलाश में 
एक साथी मिला दो साथी मिले एक कारवा बना |

फिर वो मज़ील मिली
और दूर आस्मां के एक छूर पे ले जाने लगी |

वोह साथी मेरे और वोह कारवा
जब बढ़ रहे थे समंदर को, तब मंजील मेरी बढ़ने लगी आसमां को|

कई सवाल उठने लगे झ्हम मैं ,
कयों कतरो मैं मिलती हैं ज़िन्दगी|